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सात समंदर पार छाई हुनर के धागों से सजी पालघर की रजाई पर कोरोना की काली छाया

सात समंदर पार छाई हुनर के धागों से सजी पालघर की रजाई पर कोरोना की काली छाया

स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाई जा रही रजाई का 80 फीसदी कारोबार चौपट

अमेरिका- इंग्लैंड तक थी रजाइयों की मांग

मांग न होने से परेशान महिला कारीगर

पालघर  कोरोना के संक्रमण का असर देश भर के बड़े-बड़े उद्योग-धंधों के साथ ही छोटे व्यवसायों पर भी पड़ा है। इनमें से एक है,  पालघर के हमरापुर में महिलाओं के 5 स्वयं सहायता द्वारा बनाई जा रही रजाई। जिसने विश्व में अपनी पहचान बना ली थी। लेकिन कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण महिलाओं का रजाई बनाने का कारोबार चौपट होने की कगार पर है। वाड़ा के हमरापुर इलाके में ओमगुरुदेव महिला भाग्यलक्ष्मी स्वयं सहायता समूह, प्रगती महिला स्वयं सहायता समूह,एकवीरा महिला स्वयं सहायता समूह,साईलीला महिला स्वयं सहायता समूहों की 50 महिलाओं द्वारा मिलकर रजाई बनाने का कारोबार किया जाता है। इनके द्वारा बनाई गई रजाइयों की ठंड के मौसम में भारी मांग रहती थी। लेकिन कोरोना के बढ़ते संक्रमण का असर का इन महिलाओं की भी रोजी-रोटी पर पड़ा है। इनका कहना है,कि रजाई की मांग अब न के बराबर रह गई है। पहले जहां ठंड में वह चार लाख तक कारोबार करती थी। इस बार कुछ हजार की रजाई बेचने तक उनका कारोबार सिमट कर रह गया है।जिससे महिलाये अब इस कारोबार को बंद करने तक का विचार कर रही है।


विदेशी पर्यटक अमेरिका ले गई रजाई

इस्कॉन-गोवर्धन ईको विलेज हमरापुर गांव से महज दो किलोमीटर की दूरी पर है। कोरोना के संक्रमण के फैलने से पहले यहां बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों का आना-जाना होता था। इसी दौरान स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाई गई रजाइयों को उन्होंने देखा तो वह इनकी रजाइयों को अमेरिका और इंग्लैंड ले गए। जिसके बाद इनके हाथों के हुनर ने स्वदेशी उद्यमशीलता को दूर देशों में पहचान दिलाई है। पालघर की इन महिला कारीगरों ने हुनर के धागों से ऐसी रजाई तैयार कर दिखाई जो देखते ही देखते देश-दुनिया में छा गई। वजन में हल्की होने के साथ भरपूर गर्माहट तो इसकी खूबी है ही, उस पर हाथों से उकेरी गई कलाकृतियां भी पहली ही नजर में लोगों को भा जाती हैं।

रजाई पर 600 से 800 तक का मिलता है मुनाफा

महिलाओं ने बताया कि एक रजाई को बनाने में करीब 600-700 तक का खर्च आता है। तो वही हम इसे 1200 से 1500 तक ग्राहकों को बेचते है।

क्यों इतनी पसंद की जाती हैं ये रजाई

ये रजाई अपनी खास रुई, खास कपड़े की वजह से चर्चा में रहती है,जो वजन में काफी हल्की होती है. इसकी रुई काफी हल्की होती है और इस वजह से यह वजन में काफी हल्की होती है। महिलाओं द्वारा तैयार की जा रही यह रजाई 3 या 4 किलो की होती है।इतनी हल्की होने के बाद भी यह काफी गर्म होती है। और तेज ठंड में भी आप इस हल्की रजाई से अपना काम निकाल सकते हैं। साथ ही इस रजाई में कपड़ा भी कॉटन का होता है, जिससे यह काफी अच्छी फीलिंग देती है। इस वजह से इसे हर कोई खरीदना पसंद करता है।सरकार रजाई बनाने के इस व्यवसाय के लिए अगर बाजार उपलब्ध कराती है तो स्वयं सहायता समूहों की कई महिलाओं को स्थायी रोजगार मिलेगा। महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने से उनकी आर्थिक स्थितित में भी सुधार होगा।

प्रतीक्षा पाटिल -अध्यक्षा, ओम गुरुदेव, महिला स्वयं सहायता समूह हमरापुर-वाडा


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