
पालघर
बच्चों को मिला खास तोहफा,शुरू हुई चिल्ड्रन लाइब्रेरी
बच्चों को मिला खास तोहफा,शुरू हुई चिल्ड्रन लाइब्रेरी
6 वी की छात्रा सुरवी देखेंगी लाइब्रेरी का कार्य
पालघर। गहन अंधकार के बीच पुस्तक ऐसी ज्योति है जिसकी रोशनी मशाल की तरह विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।हमारी संस्कृति,सभ्यता और ज्ञान को पुस्तके एक से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने में संवाहक होती है। पुस्तकों में ज्ञान का वह खजाना होता है जिसके जरिए इंसान को उसके जीवन का सही अर्थ पता चलता है। यही कारण है कि संचार क्रांति के इस दौर में भी पुस्तक का अस्तित्व बरकरार है।
इंटरनेट के दौर में पुस्तक संस्कृति को बचाने और छात्र-छात्राओं में किताबों से प्रेम पैदा करने के लिए पालघर केबहाडोली गांव के पाटिल आली में प्रतिभा बाल पुस्तकालय की शुरुवात की गई है। इस अनोखी पहल की संकल्पना सोनोपंत दांडेकर कॉलेज लायंस क्लब और बहाडोली गांव के शिक्षकों के एक समूह के सहयोग से साकार किया गया है। चिल्ड्रन लाइब्रेरी से बच्चों के मन में पठन-पाठन की संस्कृति को बढ़ाने के लिए यहां विज्ञान, बच्चों की कहानियाँ, कहानियाँ, मनोरंजक किताबें, अंग पहचान सामग्री, सामान्य ज्ञान और अन्य किताबें उपलब्ध करवाई गई है। जो बच्चों के लिए पढ़ने में आसान हैं। बच्चे इन किताबों को घर पर भी ले जाकर पढ़ सकेंगे। बच्चों के लिए शुरू हुई इस लाइब्रेरी का उद्घाटन प्राचार्य डॉक्टर किरण सावे और लायंस क्लब के अध्यक्ष अतुल दांडेकर ने किया। लायंस क्लब के पराग जोशी, भोगीलाल वीरा, हितेंद्र शाह, बाल पुस्तकालय की अवधारणा लाने वाले शिक्षक प्रकाश चूरी, निखिल चूरी, वैभव कुडू, विवेक कुडू, आरती कुडू, दिलीप किनी, किरण पाटिल आदि उपस्थित थे।
सप्ताह में दो बार खुलेगी लाइब्रेरी
बच्चों के लिए स्थापित की गई यह खास लाइब्रेरी सप्ताह में दो बार ही खुलेगी। पहली से दसवीं कक्षा तक के छात्र लाइब्रेरी में से कोई भी किताब पढ़ने के लिए ले जा सकते हैं। यह छात्र इस चिल्ड्रन लाइब्रेरी के सदस्य होंगे। खासतौर पर इस चिल्ड्रन लाइब्रेरी को छात्र-छात्राएं ही चलाएंगे।गांव के छठी कक्षा के छात्रा सुरवी संजय कडू इस लाइब्रेरी का काम देखेंगी। वह छात्रों को किताबें बांटेंगी और उसका रिकॉर्ड रखेगी। साथ ही बच्चों में पठन-पाठन की संस्कति को बढ़ाने के लिए गांव के पढ़े-लिखे युवा भी और शिक्षक बच्चों का मार्गदर्शन करेंगे।
बच्चों के लिए पुस्तकालय की अवधारणा मोबाइल युग में बच्चों के मन में पढ़ने की संस्कृति पैदा करने में कारगर होगी। एनजीओ के माध्यम से गांव-गांव में ऐसे और पुस्तकालय स्थापित किए जाएं तो पठन-पाठन की संस्कृति को भी बढ़ावा मिलेगा।
डॉ.किरण सावे-प्राचार्य, सोनोपंत दांडेकर कॉलेज
पालघर। गहन अंधकार के बीच पुस्तक ऐसी ज्योति है जिसकी रोशनी मशाल की तरह विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।