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पालघर के गांवों के चित्रकारों का मुंबई में बजा डंका

पालघर के गांवों के चित्रकारों का मुंबई में बजा डंका

प्रदर्शनी में वारली पेंटिंग को प्रदर्शित कर दिखाई आदिवासियों की संस्कृति की झलक और प्रकृति के प्रति उनका प्रेम

ग्रामीण सभ्यता की झलक चित्रकला में प्रदर्शित

चित्र बिना शब्दों के संवाद का एक सरल अर्थ है। मुंबई के वर्ली में स्थित नेहरू कला केंद्र में लगाई गई चित्रकला की पालघर के चार पत्रकारों की पेंटिंग को कला प्रेमी काफी पसंद कर 
रहे है। प्रदर्शनी में इन चित्रकारों ने जनजातीय जीवन में प्रकृति का महत्व, मनुष्य का प्रकृति से संबंध और प्रकृति को ईश्वर तुल्य स्थान देना देखा जा सकता है। चित्रकारों ने पेंटिंग के माध्यम से बताने का प्रयास किया है,कि आधुनिक समाज प्रकृति से दूरी बनाए हुए है। दूसरी तरफ यह जनजातियां प्रकृति से गहरे तक जुड़ी हुई है। वारली पेंटिंग में आदिवासियों के प्रकृति के प्रति प्रेम को भी दर्शया गया है।
चित्रकार जयवंत वाघेरे (वाडा), चित्रकार  प्रकाश काकड(आलोंडा, ता.-विक्रमगड) , ऋषभ झाला व धीरज पाटील (साखरे, पालघर) ने इस प्रदर्शनी में विभिन्न प्रकार के चित्र जैसे परिदृश्य, रचनाएँ और अमूर्त चित्र स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किए हैं।  चित्रकार जयवंत वाघेरे और प्रकाश काकड़ ने प्रकृति के बदलते रंगों को विभिन्न रूपों में चित्रित किया है, जबकि धीरज पाटिल ने मानव जगत की सुंदर अवस्था का चित्र चित्रित किया है।चित्रकार ऋषभ झाला ने मन में अर्थ के अमूर्त चित्र बनाए हैं। इन ग्रामीण चित्रकारों ने मुंबई के कई कला प्रेमियों आकर्षित किया है। खासतौर पर पूरे देश मे पालघर की लोकप्रिय वारली पेंटिंग को यहां काफी सराहा जा रहा है। वारली चित्रकला भारत में आदिवासी चित्रकला का एक बहुत लोकप्रिय रूप है। उनके प्रमुख विषयों में फसल का मौसम, उत्सव, शादी, अनुष्ठान और जन्म शामिल हैं। वारली चित्रकला मुख्य रूप से जीवन के मूल घटकों को प्रदर्शित करती है जो किसी भी जनजाति के प्राथमिक विषय या आधार हैं। वारली कला वारली जनजाति के नेतृत्व में विनम्र जीवन का प्रदर्शन करने की एक विशेष विशेषता रखती है।



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