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बांस,मिट्टी और गोबर से बना ‘फार्मर हाउस, जहां लोग सीखते हैं जैविक खेती के गुण

बांस,मिट्टी और गोबर से बना ‘फार्मर हाउस, जहां लोग सीखते हैं जैविक खेती के गुण

इजरायल की तकनीक से पालघर की बंजर जमीन पर लहलहा रही जैविक खेती की फसल

वाडा के एनशेत गांव में बसे रोहन ठाकरे का परिवार पीढ़ियों से पारंपरिक किसान हैं। इसलिए उन्होंने पढ़ाई पूरी की और एक कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। लेकिन इसी दौरान वह कंपनी के काम से इजरायल गये जहां उन्हें जैविक खेती के बारे में जानने का मौका मिला रोहन की पहले से रुचि कृषि में थी। जिसके बाद वह गांव लौटे और अपने पिता सुधीर ठाकरे के साथ कृषि कार्य में शामिल हो गए। इस प्रकार वह तीसरी पीढ़ी के किसान बन गए, उन्होंने अपने 9 एकड़ के खेत में जैविक खेती शुरू कर दी। रोहन ने बताया, “मेरा गांव तीनों तरफ से तीन नदियों से घिरा है। पहले यह गांव पूरी तरह से खेती पर ही निर्भर था। 1985 तक गांव का हर घर खेती से जुड़ा था। यहां के चीकू एक समय में देशभर में मशहूर थे। लेकिन समय के साथ लोग शहरों की तरफ जाने लगे और खेती लगभग बंद हो गई।

इजरायल से सीखी जैविक खेती 

रोहन ने सिक्यूरिटी मैनेजमेंट की पढ़ाई की और शहर में रहकर ही सिक्यूरिटी कंपनी चलाने लगे। वह इजरायल की एक टेक्नोलॉजी कंपनी के साथ मिलकर काम कर रहे थे। इसी सिलसिले में वह अक्सर इजरायल जाते भी रहते थे। रोहन ने बताया कि इसी दौरान मुझे जैविक खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। इजरायल से जैविक खेती के बारे में जानकारी जुटाने के बाद 2018 में रोहन ने जैविक तरीके से तरबूज, वाडा कोलम और दूसरी कई फसलें उगाने लगे। गांव के दो और किसान भी उनसे जुड़कर जैविक खेती करने लगे। 

जैविक खेती से बदली किसानों की तकदीर रोहन बताते है,कि शुरू में तो लोग जैविक खेती को लेकर हिचक थे।

लेकिन जब उन्हें पता चला कि जैविक खेती में खर्च तो कम आता ही है। साथ ही खेतो से निकलने वाली फसल भी लोगों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। जिसके बाद कुछ किसान जैविक खेती को लेकर प्रेरित हुए और उन्होंने धीरे-धीरे ही सही एक नई शुरुवात की है। रोहन ने बताया कि जैविक खेती के बल पर खरबूजा,तरबूज सहित 8 प्रकार के फलों और 12 प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है। जिसकी मुंबई में भारी मांग होती है। रोहन ने फसलों से सालाना करीब 12 लाख मुनाफा मिलने की बात कही। 

फार्मर हाउस में रुककर लोग सीख रहे खेती किसानी का गुण

रोहन कहते हैं, कि मुंबई और नाशिक सहित कई अन्य जगहों से लोग जैविक खेती से उगाई जा रही फसलों को देखने आते थे। और खेतों में ही रुकते थे। जिसके बाद जैविक खेती के गुण सीखने आने वाले लोगों के लिए खेतों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कॉटेज बनवाएं हैं। जिनका नाम ‘फारेस्ट कॉटेज’ और ‘फार्मर हाउस’ रखा गया है। फारेस्ट कॉटेज को नेचुरल कूलिंग सिस्टम के आधार पर बनाया है। वहीं फार्मर हाउस को बांस, गोबर और मिट्टी से तैयार किया गया।  रोहन का बराबर का साथ दे रही उनकी पत्नी वैदेही ठाकरे बताती है,कि जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए यहां आने वाले लोगों को निःशुल्क प्रक्षिक्षण दिया जाता है। ताकि लोग पारंपरिक खेती की ओर लौट सके।

सोशल मीडिया पर कई लोगों ने जैविक खेती के लिए किया संपर्क

रोहन बताते है,कि 19 लोगों को जैविक खेती करने की ट्रेंनिग दी गई। करीब 30 अन्य लोगों को भी जैविक खेती का प्रक्षिक्षण दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़, राजस्थान,हरियाणा, तमिलनाडु, केरल से कई लोगों ने जैविक खेती की तकनीक सीखने के लिए उनसे संपर्क किया है। जिनकी प्रक्षिक्षण जल्द शुरू होगा।

जैविक खेती की ट्रेनिंग लेकर पांच एकड़ में फल सब्जियों की खेती करने शुरुवात की है। अब कई स्थानीय किसान भी जैविक खेती करने के लिए प्रेरित हो रहे है। : - गौरांग म्हात्रे-किसान एनशेत

जैविक खेती की विधि सीखने आने वाले लोगों को यहां एक कैंटीन से जैविक और सादा भोजन परोसा जाता है। इस कैंटीन का नाम Kibbutz रखा है। Kibbutz इज़राइल के एक समुदाय का नाम है, जो खेती से जुड़े हैं।  : - रोहन ठाकरे- प्रक्षिक्षक-जैविक खेती


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