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सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद पीछे हटी केंद्र सरकार

सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद पीछे हटी केंद्र सरकार

दहानू पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर प्रशासकीय अधिकारी की नियुक्ति का आदेश लिया वापस

दहानू के वाढवण में प्रस्तावित बंदरगाह का विरोध कर रही

बंदरगाह विरोधी कृति समिति को एक बड़ी सफलता मिली है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद दहानू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति के आदेश को वापस लेते हुए इस संबंध में एक हलफनामा दायर किया है। वाढवन बंदरगाह का विरोध पिछले कई वर्षों से स्थानीय मछुआरे कर रहे हैं। लेकिन केंद्र सरकार के कदमो से हाल के दिनों में बंदरगाह को लेकर गतिविधियों ने फिर से जोर पकड़ लिया है। लेकिन वाढवण में बनने वाले बंदरगाह का लोग यह कह कर विरोध कर रहे है, कि इसके निर्माण से लाखों लोगों का रोजगार तो खत्म होगा ही क्षेत्र में पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुँचेगा। स्थानीय लोगों का आरोप है, कि समुंदर में वाढवण बंदरगाह बनाकर यहां के समुद्री संसाधन को नष्ट करने की योजना है। इस जगह पर कई दुर्लभ प्रजातियों की मछली और जैव विविधता पाई जाती है, इसलिए पर्यावरणविदों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से इसे समुद्री अभयारण्य घोषित करने के लिए प्रयास शुरू किए गए है।

सरकार चोर दरवाजे से बंदरगाह बनाने के लिए कर रही प्रयास

बंदरगाह विरोधी कृति समिति का आरोप है,कि केंद्र सरकार की नियत साफ नही है। जब दहानू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण ने वाढवन बंदरगाह को रद्द करने का आदेश दे दिया। तो केंद्र सरकार ने प्राधिकरण को ही बर्खास्त करने की मांग कर डाली। और जब उसे सफलता नही मिली तो उसने चोर दरवाजे से बंदरगाह बनाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। इसी के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बंदरगाह,गोदी और जेटी को रेड श्रेणी से बाहर कर हल्के व ऑरेंज श्रेणी में डाल दिया। ताकि बंदरगाह के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। हालांकि बंदरगाह विरोधी कृति समिति ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। 

बतादे कि केंद्र सरकार ने दहानू तहसील के वाढवन में 65 हजार करोड़ रुपये की लागत से एक नया बंदरगाह विकसित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। और इसका स्थानीय मछुआरे जबरजस्त विरोध कर रहे है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पहले ही यह कह चुके हैं कि वे इस परियोजना को लेकर स्थानीय नागरिकों और मछुआरों के साथ हैं।

जानिए कैसे हुई प्राधिकरण की स्थापना

1996 में एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दहानू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण स्थापित करने का निर्देश दिया था। प्राधिकरण का गठन उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में किया गया था।  केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश चंद्रशेखर धर्माधिकारी को प्राधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया था। कमेटी में कई सदस्य भी थे। जनवरी 2019 में धर्माधिकारी की मृत्यु के बाद दो साल से पद खाली था।

केंद्र सरकार ने 27 अक्टूबर 2020 को एक आदेश जारी कर कहा अतिरिक्त महाराष्ट्र शासन के अतरिक्त सचिव या शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव को प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाए। संघर्ष समिति और मछुआरो के संघों के प्रतिनिधियों ने इसे न्यायालय में चुनौती दी थी।

जबरन थोपे जा रहे बंदरगाह से लाखों लोगों के रोजगार छिन जाएंगे। न्याय व्यवस्था पर हमें पूरा भरोसा है। अन्याय के खिलाफ जीत निश्चित है। : - वैभव वझे-सचिव,वाढवण बंदर विरोधी संघर्ष समिती


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