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पालघर में सौर ऊर्जा क्रांति रोशन हो रहे हैं मोखाडा में बसे गांव और घर

पालघर में सौर ऊर्जा क्रांति रोशन हो रहे हैं मोखाडा में बसे गांव और घर

अंधेरे से रोशनी की ओर,बदल रही आदिवासियों की जिंदगी


सुखी पड़ी रहने वाली जमीनों में लहरा रही फसले

घुमावदार सड़क, दूर-दूर तक फैली पहाड़िया,घाटी से बहती नदी का शोर, पहाड़ी ढलानों पर स्थित आदिवासी गांव और दूर-दूर तक फैली शांति के लिए पहचाने जाने वाले मोखाडा इलाके में रहने वाले आदिवासी आज दिगंत फाउंडेशन की मदद से विकास का नया अध्याय लिख रहे है। पालघर-नासिक सीमा पर स्थित यह क्षेत्र मुंबई से 150 किमी और नासिक से 60 किमी दूर है।  लेकिन इन शहरों के करीब होने के बावजूद यह सुदूर क्षेत्र अभी भी शहरीकरण से दूर है।
भारत के नवनिर्माण का जो सपना संजोया गया था, वह आज पालघर के अंदरूनी पहुंचविहीन दूर-दराज के गांवों में देखने को मिल रहा है। खासकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में पालघर अपनी खास पहचान बनाने लगा है। सौर ऊर्जा का प्रभाव भौगोलिक परिस्थिति वाले जनजाति बाहुल्य क्षेत्र के दूर-दराज गांवों के घरों में देखने को मिल रहा है। इसकी बदौलत आज उनके घरों को रोशन किया जा रहा है। जनजाति क्षेत्र पालघर जिले के मोखाडा के आदिवासियों के घर और खेती सौर ऊर्जा से चमक रहे हैं। जो इन आदिवासी बस्तियों में नये दौर का अहसास करा रहे है। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि हमने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि पहाड़ों और दूर-दराज के इलाको में बसे उनके घर और गांव में भी परिवर्तन की रोशनी बिखरेगी। आज वर्षो से आदिवासियों की खाली पड़ी रहने वाली जमीनों में हरी-भरी फसले लहरा रही है।

आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने में जुटा दिगंत फाउंडेशन

दिगंत फाउंडेशन 2017 से मोखाडा के पोशेरा,चिंचूतारा,दंडवाल,अड़ग़ाव,धमोड़ी,गोंदे,भेंडिचा पाड़ा सहित 29 गांवों में रहने वाले हजारों आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य कर रहा है। फाउंडेशन की सीओ श्रद्धा श्रृंगारपुरे ने बताया कि यहां वैतरना जैसे डैम है जो मुंबई सहित अन्य उपनगरों की प्यास बुझाते है। लेकिन ऊँचाई पर बसे गांवों में जनवरी के बाद यहां रहने वाले आदिवासियों को पेयजल की किल्लत से जूझना पड़ता है। जिससे पानी के लिए आदिवासी महिलाओं को कई किमी तक भटकना पड़ता था। आदिवासियों के गांव में सोलर पंप लगवा कर पेयजल के साथ लोगों को खेती की सिंचाई के लिए भी पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है।

मूंगफली और सब्जियों की खेती ने बदल दी आदिवासियों की जिंदगी
दिगंत फाउंडेशन की ओर से गांवों में सोलर पंप बैठाएं जाने के बाद यहां के आदिवासियों ने खाली पड़ी जमीनों पर मूंगफली और सब्जियों की खेती शुरू कर दी। जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है। आदिवादियो ने स्वास्थ्य के लिए संजीवनी कहे जाने वाले कोल्ड प्रेस्ड ऑयल का भी उत्पादन कर मुंबई और नाशिक भेजना शुरू किया है,जहां इसकी भारी मांग है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन यहां के आदिवासियों के जीवन मे क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। चिराग,टाटा कैपिटल्स और रोटरी क्लब ऑफ मुंबई जैसे संगठनों ने भी सौर परियोजना में मदद की।  लेकिन परियोजना के निर्माण से लेकर इसके रख-रखाव तक में यहां रहने वाले लोगों का वास्तविक योगदान रहा है।  यहां करीब पांच साल पहले जो पैनल लगाए गए थे, वे आज भी ठीक से काम कर रहे हैं।  गांवों ने नदी के किनारे सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइटें भी लगाई हैं। जिसकी रोशनी बदलवा की कहानी बयां कर रही है।



सौर ऊर्जा का उपयोग करना शुरू कर दिया है। सोलर पंपों ने खेती के साथ-साथ पीने के पानी की समस्या का भी समाधान किया है।  पानी गांव में पहुंच गया है और छोटे फिल्टर की वजह से पीने योग्य हो गया है। इससे हम अच्छी खेती कर रहे है। और अब हमें काम की तलाश में बहार नही भटकना पड़ता। :  - शांताराम दलवी

हमें पीने के पानी के लिए यहाँ से बहुत दूर जाना पड़ता था। और न मिलने पर नदियों का पानी लाते थे। गर्मियों में समस्या और विकराल हो जाती थी। लेकिन पांच साल में जिंदगी काफी बदल गई हैं। :- जीजा नारायण जाधव


दिगंत फाउंडेशन आदिवासियों के जीवन में बदलाव के लिए लगातार प्रयासरत है। 29 गांव में 35 सोलर पंप लगाए गए है। आधुनिक तकनीकि के सहारे एक लाख आदिवासी परिवारों तक पहुँचकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया गया है।  : -  राहुल तिवरेकर (संस्थापक दिगंत फाउंडेशन)


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