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जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव में जीरो पर क्लीन बोल्ड होने वाली पालघर कांग्रेस पर टूट पड़ा मुसीबतों का पहाड़,पढ़े पूरी खबर

जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव में जीरो पर क्लीन बोल्ड होने वाली पालघर कांग्रेस पर टूट पड़ा मुसीबतों का पहाड़,पढ़े पूरी खबर

पालघर में हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों में बड़ी हार के बाद कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जिला कांग्रेस कमेटी के कुछ नेताओं का दावा है,कि कांग्रेस में उनकी सुनी नही जा रही है। जिससे मजबूरन नेताओं और कार्यकर्ताओं सहित करीब 300 लोग जल्द पार्टी छोड़ देंगे। बतादे कि पालघर जिला कांग्रेस पहले से ही गुटबाजी के कारण संकट में है। वही अब नेताओं की ताजा बगावत से कांग्रेस की मुश्किलें खत्म तो होने से रही बल्कि और बढ़ गई है। जबकि हाल ही में पालघर जिला परिषद की 15 और पंचायत समिति की 14 सीटो पर उपचुनाव संपन्न हुए जिसमे कांग्रेस अपना खाता भी नही खोल सकी थी। और अधिकतर सीटों पर उसे अपनी जमानत तक गवानी पड़ी थी। लेकिन कांग्रेस के नेता चुनाव में मिली बड़ी हार पर मंथन छोड़कर सार्वजनिक रूप से असंतोष जताने से नहीं हिचक रहे हैं। इस स्थिति में जिला कांग्रेस के सामने खुद को संभालने का संकट भी खड़ा हो गया है।

कांग्रेस के नवनियुक्त जिलाध्यक्ष के विरोध में बगावत की आग दिल्ली दरबार तक पहुँची
कांग्रेस ने हाल ही में प्रफुल पाटील को पालघर का अपना नया जिलाध्यक्ष नियुक्त किया है। जिसके बाद कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे दिवाकर पाटील के नेतृत्व में अन्य कांग्रेसियों ने पार्टी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया है। दिवाकर पाटील ने आरोप लगाया है,कि जिनका कांग्रेस कभी लेना देना नही रहा ऐसे लोगों को पदाधिकारी बनाकर हम पर थोपा जा रहा है। पाटील ने कहा कि दशकों से पार्टी को मजबूत कर रहे नेताओं की बात सुनी जानी चाहिए। हमने अपनी बात से दिल्ली में पार्टी आलाकमान को अवगत करा दिया है।

जहां तक कांग्रेस की बात है, वह पूरे देश में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी हारी थीं, तो बहुत कम समय में उन्होंने वापसी की थी। लेकिन अभी कांग्रेस में वैसा कोई करिश्माई नेतृत्व नहीं दिख रहा है, जो कांग्रेस को इस कठिन घड़ी में उबार सके। अब भी कांग्रेस के नेता इस हार के लिए सामूहिक जिम्मेदारी की बात कहते हैं। यह एक तरह से सोनिया और राहुल गांधी को बचाने जैसा है। हालांकि सोनिया और राहुल गांधी ने अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की है, पर उन्हें आत्मनिरीक्षण करना होगा।

आज जो स्थिति है, उसमें कांग्रेस की हालत क्षेत्रीय दलों जैसी हो गई है। उसके पास इतने भी नंबर नहीं हैं कि वह विपक्षी दल की भूमिका निभा सके। दूसरी ओर भाजपा अखिल भारतीय स्तर की पार्टी बनकर उभरी है। अगर कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में बदलाव पर विचार नहीं किया, तो इस बात का भी जोखिम है कि कहीं पार्टी टूट न जाए। ऐसा होगा ही, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन हो सकता है कि कांग्रेस के कुछ नेता कुछ पुराने कांग्रेसियों, जो पार्टी में एक परिवार के वर्चस्व के कारण बाहर जा चुके हैं, के साथ मिलकर अलग समूह बना लें। कांग्रेस को अब बिल्कुल सतह से शुरुआत करनी होगी और पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।


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