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आदिवासी छात्रों का खेवनहार बना दिंगत स्वराज फाउंडेशन,जिनके पास स्मार्टफोन-इंटरनेट की सुविधा नहीं उन्हें पढ़ाने के लिए आते हैं ‘स्पीकर टीचर'

आदिवासी छात्रों का खेवनहार बना दिंगत स्वराज फाउंडेशन,जिनके पास स्मार्टफोन-इंटरनेट की सुविधा नहीं उन्हें पढ़ाने के लिए आते हैं ‘स्पीकर टीचर'

कोरोना महामारी ने लोगों की ज़िदगी में बड़ा बदलाव किया है, नौकरी से लेकर शिक्षा तक सब कुछ ऑनलाइन हो गया था। अगर बात करें छात्रों की तो उनके लिए लगभग दो साल से स्कूल बंद रहे हैं लेकिन बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर ना पड़े इसके लिए स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास शुरू की, जो छात्रों के लिए पढ़ाई का एकमात्र सहारा रही है। ऐसे में पूरी दुनिया में मोबाइल या लैपटॉप पर ऑनलाइन पढ़ाई का रास्ता अपनाया गया। 
पर पालघर जिले के जव्हार,मोखाडा,विक्रमगड जैसे दूरदराज के कई इलाके ऐसे भी हैं जहां मोबाइल का नेटवर्क न होना एक बड़ी समस्या है। और इन इलाकों में गरीब आदिवासी रहते है,जिनके लिए महंगा फोन खरीदना सम्भव नही है। जिससे ऐसी जगहों पर ऑनलाइन पढ़ाई बड़ी चुनौती है। ऐसे में आदिवासियों के बीच काम करने वाले दिंगत स्वराज फाउंडेशन ने एक अनोखा उपक्रम शुरू किया है।

फाउंडेशन ने जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन-इंटरनेट की सुविधा नहीं उन्हें पढ़ाने के लिए आते हैं ‘स्पीकर टीचर' की व्यवस्था की है। दिंगत स्वराज फाउंडेशन ने कोरोना काल आदिवासियों के बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो इसके लिए स्पीकर और पेन ड्राइव को शिक्षक की भूमिका में ला दिया है। और फाउंडेशन के सदस्य खुद जाकर एक जगह बच्चों को इकट्ठा करते है और कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए स्पीकर से बच्चों को पढ़ाया जाता है। ग्रामीण भाग में तैनात एक शिक्षक ने बताया कि कोरोना काल में स्कूलों के बंद होने से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई थी।ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों के अभाव में ऑनलाइन पढ़ाई भी नहीं हो पा रही थी, जिससे कई छात्रों और अभिभावकों को गंभीर समस्या हो रही है।

स्पीकर टीचर की ये है खूबियां

स्वराज फाउंडेशन स्कूल टीचर्स से मदद लेकर सिलेबस के मुताबिक स्टडी मटेरियल रिकॉर्ड करवाता है। सुबह-सुबह फाउंडेशन के वॉलेंटियर इन गांवों में जाकर किसी खुली जगह पर ब्लूटूथ स्पीकर से कोर्स पढ़ाते हैं। फाउंडेशन के सदस्यों ने बताया कि शुरुआत में कम बच्चे आते थे। धीरे-धीरे बच्चों की दिलचस्पी बढ़ी। अब काफी बच्चे पढ़ाई करने आ रहे हैं। इस पूरी पढ़ाई के दौरान एक सहायक भी मौजूद रहता है। कोई बात नहीं समझ में आने पर बच्चे इनसे सवाल कर सकते हैं। या ऑडियो दोबारा सुनने के लिए रिवर्स करवा सकते हैं। गांवों में इस नई तकनीक के जरिए हो रही पढ़ाई अब बच्चों को भी पसंद आने लगी है। स्कूली छात्रों का कहना है कि अब तक वह पढ़ाई नहीं करते थे लेकिन जब से स्पीकर गुरु गांव में आए हैं। तब से हमें कविताएं अंग्रेजी और बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।


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