कब बहुरेंगे गारमेंट कारखाना वालों के दिन?
मुंबई। कोरोना की मार तो वैसे सभी को झेलनी पड़ी, लेकिन गारमेंट कारखानावाले अपने पहले के अच्छे दिनों को याद करते हुए कुछ गणमान्यों का मानना है कि मुंबई आदि अगल-बगल क्षेत्रों में स्कूल -कॉलेज आदि के खुलने की बात इन दिनों सुनायी पड़ रही है। ऐसे में कुछ को उम्मीद नजर आ रही है कि शायद कुछ महीने बाद इन सबके कारोबार के दिन बहुर सकते हैं। गौरतलब हो कि एक्सपोर्टस में सिलाई मशीनों की घरघराहट अभी भी ख़ामोश नहीं हुई है, लेकिन जो मशीनें चल रही हैं, उनके मुक़ाबले धूल खा रही मशीनों की तादाद कहीं ज्यादा है। ज्यादातर कामगार अपने-अपने गांव लौट में पड़े है और मालिकान के संपर्क में बने हुए हैं फिर से रोजी-रोटी के बाबत, कुछ बचे-खुचे हालात बदलने की उम्मीद में आसपास डेरा भी डाले हुए हैं। इससे जुड़े कुछ कारोबारियों का कहना है कि बाज़ार की स्थिति में तेज़ बेहतरी के ख़ास आसार नहीं नज़र आ रहे। निर्यातक इस संकट से उबरने के लिए कटौती और छंटनी तो कर ही रहे हैं, कुछ नए रास्ते भी तलाश करते नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ दीपावली के इर्द-गिर्द वाले तीन-चार महीने जहां गारमेंट कारखाने वालों के पास पहले इतने कार्य की अधिकता हुआ करती थी कि दिन-रात मशीनें चलती ही रहती थीं। आज का आलम यह है कि मुश्किल से लाइट बिल और कारखाने का रेंट भी नहीं निकल पा रहा है। इसी मामले पर धारावी के कुछ व्यवसायियों का कहना है कि हमारा कार्य यहां के सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों के गणवेश (यूनिफार्म) बनाने का था, जो पिछले साल से लेकर इस साल और अभी तक तो कोई आर्डर बनाने को नहीं मिला है। दो दर्जन के करीब हमारे यहां सिलाई मशीन हैं, जिसके माध्यम से दीपावली के आस-पास महीनों के दौरान साल भर में होने वाले आधे से ज्यादा कार्य का निष्पादन हो जाता था, जिससे काम भर का धन इतना अर्जित हो जाता था कि इससे मालिक और कारखाने में काम कर रहे कामगारों के चेहरे पर भी खुशी छा जाती थी। बाकी बचे साल के महीनों के दौरान खर्चा पानी भर का कार्य चलता रहता था। कुछ का कहना है कि बहरहाल यह बुरा दिन भी एक न एक दिन चला ही जाएगा और अच्छे दिन गारमेंट कारखाने वालों के फिर आ जाएंगे।